– शहर सहित आसपास मौजूद हैं 10वीं-11वीं शताब्दी की ऐतिहासिक धरोहरें
– पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है 99 फीट ऊपर से गिरने वाला धुआंधार जलप्रपात
– 1997 का भूकंप भी नहीं हिला सका था जबलपुर की विशालकाय चट्टानों को
– मां नर्मदा की विशेष कृपा है जबलपुर (जबालिपुरम) पर
Jabalpur News: जबलपुर. मध्यप्रदेश के पांच बड़े शहरों में शामिल जबलपुर प्रदेश का अद्भुत-अलौकिक शहर है. इस शहर पर कलकल बहती मां नर्मदा की विशेष कृपा है. शहर की पहचान आज भी 10वीं-11वीं शताब्दी की ऐतिहासिक धरोहरों से होती है, जिन्हें देखने के लिए मप्र ही नहीं, अपितु देश सहित विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं.
करीब आधा दर्जन से अधिक ऐतिहासिक धरोहरों (स्थान) पर सुबह से लेकर शाम तक पर्यटकों का तांता लगा रहता है. देश ही नहीं विदेशों में भी जबलपुर को ऐतिहासिक पहचान यह धरोहरें दिला रही हैं. इतिहासकारों के अनुसार जबलपुर का अस्तित्व 10वीं-11वीं शताब्दी से अधिक पुराना है. जबालिपुरम से जबलपुर कहलाने वाले शहर में 10वीं-11वीं शताब्दी की अनेकों धरोहरें है, जो इस बात का प्रमाण है. कलकल बहती नर्मदा नदी ने जबलपुर को देश ही नहीं अपितु विदशों में भी विशेष पहचान दी है. धुआंधार जलप्रपात (भेड़ाघाट), मदन महल किला, चौंसठ योगिनी मंदिर, रानी दुर्गावती संग्रहालय, बैलेंसिंग रॉक, भेड़ाघाट की नौका विहार एवं बंदरकूदनी बरबस ही पर्यटकों को जबलपुर आने के लिए ललायित करती है.
99 फीट ऊपर से गिरता धुआंधार जलप्रपात
जबलपुर की सबसे बड़ी पहचान नर्मदा नदी किनारे भेड़ाघाट जलप्रपात है. शहर से करीब 280 किलोमीटर दूर स्थित भेड़ाघाट वॉटरफॉल लोगों के आकर्षण का केन्द्र है. यह जलप्रपात करीब 98.99 फीट (30 मीटर) की ऊंचाई से गिरता है. बड़ी वैग के साथ गिरने वाला यह जलप्रपात धुएं में तब्दील नजर आता है, जिसकी वजह से इसका नाम धुआंधार भी पड़ा. यह जलप्रपात संगमरमर की चट्टानों से भी विशेष पहचान रखता है. सूर्योदय और सूर्योअस्त के दौरान संगमरमर की यह चट्टानें तीन रंगों में नजर आती है, जिसमें सुनहरी, गुलाबी और सफेद, जो पर्यटकों को बरबस ही लुभाती है. भेड़ाघाट में नौका विहार रोमांचकारी है, वहीं इन संगमरमर की चट्टानों को बंदर कूदनी भी कहा जाता है. दरअसल, भेड़ाघाट में कई स्थानों पर यह चट्टाने इतनी करीब है कि बंदर एक चट्टान से दूसरी चट्टान पर आसानी से कूदकर पहुंच जाते हैं.
1997 में आया भूंकप भी नहीं हिला सका था यह चट्टान
ऐतिहासिक धरोहरों की श्रंखला में जबलपुर में मदन महल किले के पास दो विशालकाय चट्टानें है, जिसे बैलेंसिंग रॉक कहा जाता है. यह चट्टाने एक दूसरे के सहारे टिकी है. देखने में लगता है कि तेज हवा आंधी में यह चट्टानें कभी भी धराशायी हो जाएंगी. लेकिन हकीकत यह है कि साल 1997 में जबलपुर में आए भीषण भूकंप ने जहां पूरे शहर में तबाही मचा दी थी, वहीं यह दोनों चट्टाने अडिग अपने स्थान पर ही रहीं, हिली तक नहीं. इतिहासकारों के अनुसार यह चट्टानें इस पोजीशन में आज की नहीं, बल्कि कई सालों से ऐसे ही अनवरत् नजर आ रही हैं.
11वीं शताब्दी का प्रमाण है मदन महल किला
जबलपुर में मौजूद मदन महल किलो शहर की 11वीं शताब्दी की पहचान है. इतिहासकारों के अनुसार 11वीं शताब्दी में गोंड राजा मदन शाह द्वारा इसे किले को बनावाया था. यह किला चट्टान पर बना हुआ है. यह काफी मजबूत हैं. किले में आकर्षक नक्कासी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है. किले के निर्माण के दौरान राजा मदन शाह द्वारा सैन्य क्षमताओं का विशेष ध्यान रखा गया था. यह किला शौर्य और पराक्रम की अपनी कहानी स्वयं ही बयां करता हुआ नजर आता है.
चौंसठ योगिनी में मां दुर्गा के 64 अवतार
जबलपुर के ही भेड़ाघाट क्षेत्र में पंचवटी गार्डन के पास यौंसठ योगिनी माता मंदिर है. यह मंदिर 10वीं शताब्दी का बताया जाता है. मंदिर की विशेषता यह है कि यहां 64 अलग-अलग कक्ष है, जिनमें माता के 64 ही अवतार विराजित हैं. यह मंदिर देश के चुंनिदा मंदिरों में शामिल हैं, जहां माता 64 रूप में विराजित हैं. यह मंदिर अद्वितीय गोलाकार आकार में है बना है, श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. यह मंदिर कलचुरी राजवंश के समय का बताया जाता है.
मुगल शासक अकबर से संघर्ष की कहानी बया करता संग्रहालय
जबलपुर में रानी दुर्गावती संग्राहलय है, जो बहादुर शासिका रानी दुर्गावती के पराक्रम की कहानी बयां करता है. संग्रहालय में 10वीं शताब्दी की अनेक कलाकृतियां, मृर्तियां, शिलालेख हैं, जो रानी दुर्गावती के मुगल शासक अकबर से संघर्ष को दर्शाता है. इस संग्रहालय में गुप्त व कलचुरी काल की अनेक मूर्तियां, आदिवासी कलां से संबंधित अनेक धरोहरें मौजूद हैं.