– कोयले की खदानें और कृषि पर आधारित है जिले की आबादी
– आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं, लेकिन अब समृद्धि की ओर बढ़ रहे कदम
Chhindwara News : छिंदवाड़ा. कोयले की खदानों से अपनी पहचान रखने वाले मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले का इतिहास भी राजा-महाराजाओं से जुड़ा है. इतिहासकारों के मुताबिक छिंदवाड़ा की धरती पर गोंड राजाओं का शासन रहा है, हालांकि बाद में अंग्रेजों ने भी यहां शासन किया है. यहां की धरती प्राकृतिक खनिज संपदा से भरी पड़ी है, जबकि वर्तमान में कृषि भी यहां की समृद्धि का प्रमुख साधन है. यह जिला आदिवासी संस्कृति के लिए अपनी विशेष पहचान रखता है. यहा जिला वर्तमान में भी बेकवर्ड जिलों में शामिल हैं, हालांकि अब बढ़ती आधुनिकता और शिक्षा के बढ़ते स्तर के कारण यहां भी स्थिति सुधरती जा रही है.
इतिहास के मुताबिक इस जिले में छिंद (ताड़) के पेड़ बहुतायात में पाए जाते हैं. यहां गोंड राजाओं ने शासन किया है. उस समय से लेकर वर्तमान में भी यहां आदिवासी संस्कृतिक झलकती है. 18वीं शताब्दी तक यहां की धरती पर गोंड राजाओं ने शासन किया, हालांकि इसके बाद मराठा और बाद में अंग्रेजों का भी शासन रहा. देश की आजादी के बाद यह जिला मध्यप्रदेश का अभिन्न अंग बना.
क्यों पड़ा छिंदवाड़ा नाम
छिंदवाड़ा नाम को लेकर इतिहासकार कहते हैं कि इस जिले में छिंद के पेड़ बहुत तादाद में थे. नतीजतन छिंद का मतलब ताड़ के पेड़ और वाड़ा का मतलब स्थान. वही दूसरी और कहा जाता है यहां शेर बहुत तादाद में इन्हीं दोनों कारणों के चलते इसका नाम छिंदवाड़ा पड़ा था. माना जाता है इस जिले में शेर बहुत थे, यानि इस जिले में प्रवेश करना मतलब शेरों के बीच से होकर गुजरना.
तीसरी शताब्दी तक रहा बुलंद राजा का शासन
इतिहास के मुताबिक यहां की धरती पर बुलंद राजा का शासन रहा है. बताया जाता है कि तीसरी शताब्दी तक बुलंद राजा के वंशजों ने यहां शासन किया है. वहीं एक प्राचीन पट्टिका राष्ट्रकूट वंश से संबंधित है, जो नीलकंठ गांव में है. इसमें इस राजवंश ने 7वीं शताब्दी तक यहां शासन किया, फिर गोंडवाना वंश का शासन आया.
राजा जाटव ने कराया था किले का निर्माण
इतिहासकारों के अनुसार गोंड समुदाय के राजा जाटव ने देवगढ़ किले का निर्माण कराया था. बताया जाता है कि भक्त बुलुंड राजा वंश में सबसे शक्तिशाली था और उन्होंने सम्राट औरंगजेब के शासन क दौरान मुस्लिम धर्म को अपना लिया था. बाद में कई शासकों ने यहां की धरती पर राजा किया. सबसे आखिरी में मराठा शासकों का राज रहा, जो 1830 तक रहा, इसके बाद यहां की धरती अंग्रेजों के अधीन आ गई थी.
1803 से शुरू हुआ ब्रिटिश शासन
बताया जाता है कि 17 सितंबर 1803 से यहां ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटिश शासन की शुरुआत हो गई थी, जो देश की आजादी तक रहा. स्वतंत्रता के बाद नागपुर को छिंदवाड़ा जिले की राजधानी बना दिया था।
पहले स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी रहा छिंदवाड़ा
छिंदवाड़ा भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम का भी साक्षी रहा है. अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत में तात्या टोपे का यहां आगमन हुआ था. इसके अलावा छिंदवाड़ा के लोगों ने रोलेक्ट अधिनियम, असहयोग आंदोलन, सिमन आयोग, झंडा सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह, भारत छोड़ों आंदोलन, धनौरा कांड आदि के खिलाफ भाग लिया.
स्वतंत्रता की लड़ाई में यह रहे भागीदार
जिले के अनेक लोगों ने आजादी की लड़ाई में सहभागिता की है. इनमें चेन शाह (सोनपुर के जागीरदार, ठाकुर राजबा शाह (जागीरदार प्रतापगढ़) महावीर सिंह (जागीरदार हाराकोट), सर्वश्रमी बादल भाइ्र (पापरा), स्वामी श्यामानंद (अमरवारा), राजा शुक्ला (छिंदवाड़ा), अुिल रहमान (छिंदवाड़ा), नाथु लक्ष्मण गोसाई (सौसर), वामन राव पटेल (वानोरा) सहित स्व. सरस्वती, विश्वनाथ सालपेकर, अर्जुन सिंह सिसोदिया, गुलाब सिंह चौधरी, केजी रखेड़ा, प्रेमचंद जैन, रामचंद भाई शाह, आरके हलदुलकर, पिलाजी श्री खंडे, सुरन प्रसाद सिंगरे, सूरज प्रसाद मधुरिया, जगमोहनलाल श्रीवास्तव, चन्नीलाल राय, महादेव राव खतौर्कर, चौअेल चावेरे, तुकाराम थॉसर, गोविंद राम त्रिवेदी, महादेव घोटे, दुर्गाप्रसाद मिश्रा, हरप्रसाद शर्मा, शिवकुमार शुक्ला, चौखेलाल मान्धाता, माणिक राव चौरे, विश्वम्भरनाथ पांडे, रामनिवास व्यास, गुरु प्रसाद श्रीवास्तव, दयाल मालवीय, प्रहलाद बावसे, सत्यवती बाई, जयराम वर्मा आदि शामिल रहे.
जिले की वर्तमान स्थिति
छिंदवाड़ा जिले की बात करें तो यह जिला प्रदेश सहित देश में राजनीतिक मामले में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है. 2011 की जनगणन के मुताबिक जिले की आबादी 20 लाख है, जबकि अब चूंकि 14 साल हो गए हैं तो यह आबादी निश्चित से बढ़ गई है. जिले में 14 तहसीले हैं, जिनमें छिंदवाड़ा, तामिया, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौराई, सौंसर, पांढुर्ना (अब जिला), बिछुआ, परासिया, मोहखेड़, हर्रई, चांद, उमरेठ एवं लक्ष्मण शामिल हैं. इसी तरह जिले में सात विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. जिनमें सौंसर, छिंदवाड़ा, परासिया, जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौराई और पांढुर्ना शामिल हैं.
कृषि और खनिज पर आधारित अर्थव्यवस्था
जिले में वर्तमान अर्थव्यवस्था की बात करें तो यह कृषि और खनिज पर आधारित है. यह जिला मक्का, गेहूं और कपास जैसी फसलों के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है. यहां एशिया की सबसे बड़ी मक्का मण्डी है. इसके अलावा जिले में रोजगार के प्रमुख साधन के लिए कोयले की खदानें है.