MP politics ADR Report : मध्यप्रदेश की राजनीति में परिवारवाद का गहरा रंग चढ़ा हुआ है। चाहे सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) हो या विपक्षी कांग्रेस, दोनों ही दलों में वंशवादी राजनीति की जड़ें गहरी हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान मध्यप्रदेश विधानसभा में करीब 20 विधायकों के पीछे उनकी पारिवारिक राजनीतिक विरासत की लंबी फेहरिस्त है।
टिकट बंटवारे से लेकर संगठन में दबदबे तक, परिवारों का प्रभाव साफ नजर आता है। आइए, जानते हैं कैसे कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इस ‘वंशवादी’ दौड़ में एक-दूसरे से पीछे नहीं हैं।
कांग्रेस में परिवारवाद की चमक
कांग्रेस की मौजूदा विधानसभा टीम पर नजर डालें तो यह साफ है कि पार्टी नए चेहरों को मौका देने के बजाय पुरानी राजनीतिक विरासत को ही आगे बढ़ा रही है। कई विधायकों के परिवार न सिर्फ सत्ता में रहे, बल्कि संगठन में भी उनकी मजबूत पकड़ रही है। कुछ प्रमुख उदाहरण –
सीधी (चुरहट): विधायक अजय सिंह पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के बेटे हैं। अर्जुन सिंह केंद्र में कई बार मंत्री रहे और मध्य प्रदेश की सियासत में उनका दबदबा रहा।
गुना (राघौगढ़): विधायक जयवर्धन सिंह के पिता दिग्विजय सिंह दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं।
छिंदवाड़ा: पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ 2019 में सांसद बने, हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
झाबुआ: विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया के पिता कांतिलाल भूरिया रतलाम-झाबुआ से सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे।
खरगोन (कसरावद): विधायक सचिन यादव के पिता सुभाष यादव उपमुख्यमंत्री थे, जबकि बड़े भाई अरुण यादव केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं।
बालाघाट (ब्यौहारी): विधायक संजय उइके के पिता गनपत सिंह उइके कई बार विधायक और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे।
खरगोन (भीकनगांव): विधायक झूमा सोलंकी के रिश्तेदार जीवन सिंह पटेल 1989 से रामपुर बघेलान से विधायक रहे।
धार (गंधवानी): विधायक उमंग सिंघार पूर्व उपमुख्यमंत्री स्व. जमुना देवी के भतीजे हैं, जो लोकसभा और राज्यसभा की सदस्य रह चुकी हैं।
हरदा (टिमरनी): विधायक अभिजीत सिंह (अंकित बाबा) के अंकल संजय शाह भाजपा के वरिष्ठ नेता और टिमरनी से विधायक रहे।
बालाघाट: विधायक अनुभा मुंजारे के पति कंकर मुंजारे तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे।
अलीराजपुर (जोबट): विधायक सेना के पति महेश पटेल दो बार विधायक और जिला अध्यक्ष रहे।
भोपाल उत्तर: विधायक आतिफ अकील के पिता आरिफ अकील कांग्रेस के कद्दावर नेता और लंबे समय तक विधायक रहे।
निवाड़ी (पृथ्वीपुर): विधायक नितेंद्र सिंह राठौर के पिता ब्रजेंद्र सिंह राठौर पांच बार विधायक और मंत्री रहे।
छिंदवाड़ा (सौंसर): विधायक विजय रविनाथ चौरे के पिता रेवनाथ चौरे 1990 में विधायक बने।
सतना (अमरपाटन): विधायक डॉ. राजेंद्र कुमार सिंह के पिता शिवमोहन सिंह वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और 1990 में विधायक रहे।
दतिया: विधायक राजेंद्र भारती के पिता श्याम सुंदर श्याम पांच बार विधायक रहे।
भिंड (अटेर): विधायक हेमंत सत्यदेव कटारे के पिता सत्यदेव कटारे चार बार विधायक और नेता प्रतिपक्ष रहे।
सतना: विधायक डब्बू सिद्धार्थ सुखलाल कुशवाह के पिता सुखलाल कुशवाह 1996-1998 में सांसद रहे।
सिवनी (केवलारी): विधायक रजनीश हरवंश सिंह के पिता हरवंश सिंह विधायक रहे।
धार (कुक्षी): विधायक बघेल सुरेंद्र सिंह हनी के पिता प्रताप सिंह बघेल 2008 में भाजपा से विधायक बने।
गुना (बमोरी): विधायक ऋषि अग्रवाल के पिता कन्हैयालाल अग्रवाल 2008 में विधायक और मंत्री रहे।
दोनों दलों में एक जैसी कहानी
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही परिवारवाद की राह पर चल रही हैं। टिकट बंटवारे से लेकर संगठन में अहम पदों तक, पारिवारिक विरासत का दबदबा साफ दिखता है। यह स्थिति नए और योग्य नेताओं के लिए अवसरों को सीमित कर रही है। सवाल यह है कि क्या मध्य प्रदेश की सियासत कभी इस वंशवादी चक्र से बाहर निकल पाएगी? या फिर यह ‘परिवार राज’ यूं ही चलता रहेगा? जवाब भविष्य के गर्भ में है, लेकिन यह मुद्दा निश्चित रूप से सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।