Nursing College Scam : जबलपुर, मध्यप्रदेश। नर्सिंग कॉलेजों फर्जीवाड़े के काले कारनामे को उजागर करने वाली जनहित याचिका ने एक नया मोड़ ले लिया है। जबलपुर हाईकोर्ट की युगलपीठ ने सीबीआई को सख्त निर्देश दिए हैं, जिसके तहत जांच एजेंसी ने याचिकाकर्ता को उपयुक्त पाए गए कॉलेजों का विस्तृत डेटा सौंप दिया। यह कदम न केवल शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार की परतें खोल रहा है, बल्कि स्वास्थ्य क्षेत्र की नींव को हिला देने वाले इस घोटाले में जिम्मेदारों पर शिकंजा कसने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। अगली सुनवाई 28 अक्टूबर को निर्धारित है, जहां इस मामले में और खुलासे होने की उम्मीद है।
फर्जी मान्यताओं का पर्दाफाश: याचिका की शुरुआत
यह मामला तब सुर्खियों में आया जब लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल ने प्रदेशभर के नर्सिंग कॉलेजों की मान्यता प्रक्रिया में फैले फर्जीवाड़े के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की। बघेल ने आरोप लगाया कि कई कॉलेज बिना पर्याप्त सुविधाओं, योग्य फैकल्टी या बुनियादी ढांचे के ही छात्रों को प्रवेश दे रहे हैं, जो नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता को गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। कोर्ट ने इस याचिका को गंभीरता से लेते हुए जांच का जिम्मा केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिया।
सीबीआई की प्रारंभिक रिपोर्ट में प्रदेश के नर्सिंग कॉलेजों को तीन श्रेणियों में बांटा गया: पूरी तरह उपयुक्त, आंशिक कमियों वाले और अनुपयुक्त। यही रिपोर्ट विवादों का केंद्र बन गई, जब याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ‘उपयुक्त’ घोषित एक कॉलेज में फैकल्टी के दस्तावेज जाली हैं।
मार्कशीट में विरोधाभास : कोर्ट की पैनी नजर
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश आवेदन ने कोर्ट में हड़कंप मचा दिया। विशाल बघेल ने बताया कि एक ऐसे नर्सिंग कॉलेज की फैकल्टी, जिसे सीबीआई ने उपयुक्त पाया हो, उसके शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में गड़बड़ी है। याचिकाकर्ता ने मध्य प्रदेश नर्सिंग काउंसलिंग पोर्टल से डाउनलोड की गई मार्कशीट को सबूत के रूप में पेश किया, जो सीबीआई द्वारा कोर्ट में जमा की गई मार्कशीट से बिल्कुल अलग थी। यह खुलासा न केवल जांच की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि पूरे सिस्टम में व्याप्त फर्जीवाड़े की गहराई को बेनकाब करता है।
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की युगलपीठ ने इस विरोधाभास को गंभीरता से लिया। कोर्ट ने तुरंत सीबीआई को आदेश दिया कि वह अपनी जांच रिपोर्ट का पूरा डेटा—जिसमें उपयुक्त कॉलेजों की सूची, फैकल्टी विवरण और अन्य गोपनीय जानकारी शामिल है—याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराए। सीबीआई ने कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए न केवल डेटा को अदालत में पेश किया, बल्कि याचिकाकर्ता को भी इसे सौंप दिया। इस प्रक्रिया में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने प्रभावी पैरवी की, जो इस लड़ाई को जनता के हित में मजबूती प्रदान कर रही है।
घोटाले की जड़ें: व्यापक जांच का दायरा
यह घटना मध्य प्रदेश के नर्सिंग सेक्टर में लंबे समय से चली आ रही अनियमितताओं का हिस्सा है। पिछले कुछ वर्षों में हाईकोर्ट ने कई बार सीबीआई को निर्देश दिए हैं, जिसमें 2024 में 15 दिनों में जांच पूरी करने और 2025 में जिम्मेदार अधिकारियों के नाम उजागर करने जैसे कदम शामिल हैं। हाल ही में, मार्च 2025 में कोर्ट ने सरकार को मूल फाइलें पेश करने का आदेश दिया था, जबकि जनवरी में दस्तावेजों और सीसीटीवी फुटेज के गायब होने का मामला भी सामने आया। जुलाई 2025 में फैकल्टी की जाली मार्कशीटों पर सख्ती के तहत एमपी ऑनलाइन को भी निर्देश जारी हुए।
अगली सुनवाई 28 अक्टूबर को होने वाली है, जहां याचिकाकर्ता द्वारा प्राप्त डेटा के आधार पर और सख्त कार्रवाई की उम्मीद है। कोर्ट ने संकेत दिए हैं कि यदि फर्जीवाड़े की पुष्टि हुई, तो संबंधित अधिकारियों और कॉलेज प्रबंधनों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होगी।