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MP में प्रमोशन आरक्षण विवाद : हाईकोर्ट ने सरकार से पूछे तीखे सवाल

MP High Court

MP Promotion Reservation : जबलपुर। मध्य प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रमोशन में आरक्षण का मामला एक बार फिर गरमाया हुआ है। जबलपुर हाईकोर्ट में इस विवाद पर हुई सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई और कई महत्वपूर्ण सवालों की बौछार कर दी। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने पूछा कि जब पुरानी प्रमोशन नीति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और मामला लंबित है, तो सरकार ने नई नीति क्यों लाई? अगर सुप्रीम कोर्ट ने पुरानी याचिका को स्वीकार कर लिया, तो नई नीति का क्या औचित्य बचेगा? वहीं, यदि याचिका खारिज हो गई, तो नए नियमों के तहत हो रही पदोन्नतियों पर क्या असर पड़ेगा?

कोर्ट ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है, जिसके बाद ही आगे की कार्यवाही होगी। यह मामला प्रदेश के लाखों कर्मचारियों के भविष्य से जुड़ा है, जो वर्षों से प्रमोशन का इंतजार कर रहे हैं।

नई नीति पर उठे गंभीर सवाल
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार की ओर से पेश वकीलों पर सवालों की झड़ी लगा दी। मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा ने कहा कि पुरानी पॉलिसी पर सुप्रीम कोर्ट में विवाद चल रहा है, फिर नई पॉलिसी लाने का क्या मतलब? याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि सरकार ने बस नाम बदलकर ‘मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2025’ नाम से नया नियम बना दिया, लेकिन इसमें कोई मूलभूत बदलाव नहीं है। कोर्ट ने इस पर चिंता जताई कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद नई नीति के तहत की गई सभी पदोन्नतियां प्रभावित हो सकती हैं, जिससे कर्मचारियों में असमंजस की स्थिति पैदा हो जाएगी।

सरकार की ओर से कोर्ट को आश्वस्त किया गया कि एक परिपत्र जारी कर पूरी स्थिति का स्पष्टीकरण दिया जाएगा। लेकिन बेंच ने साफ कहा कि स्पष्टीकरण मिलने के बाद ही अगली सुनवाई होगी। इस बीच, मौखिक आश्वासन के आधार पर नई नीति के तहत चल रही प्रमोशन प्रक्रियाओं को फिलहाल रोक दिया गया है। याचिका में मुख्य रूप से डॉ. स्वाति तिवारी और अन्य याचिकाकर्ताओं ने 2025 के नियमों को चुनौती दी है, दावा करते हुए कि यह सुप्रीम कोर्ट के लंबित मामले की अवहेलना है।

यह विवाद 2016 से चला आ रहा है, जब मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ‘मध्य प्रदेश लोक सेवा पदोन्नति नियम 2002’ को रद्द कर दिया था। इस नियम में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान था, जिसके खिलाफ सामान्य वर्ग के कर्मचारियों ने याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दाखिल की, जहां मामला अभी भी लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए, जिसके चलते प्रदेश में पदोन्नतियां पूरी तरह रुक गईं।

इसके परिणामस्वरूप, 2016 से अब तक करीब 75,000 से अधिक अधिकारी-कर्मचारी बिना प्रमोशन के सेवानिवृत्त हो चुके हैं, जिनमें से लगभग 38,000 को प्रमोशन मिलना था। दोनों वर्ग—आरक्षित और अनारक्षित—के कर्मचारी प्रभावित हुए हैं। जून 2025 में सरकार ने नए नियमों के तहत आरक्षण बहाल करने का प्रयास किया, लेकिन सपाक्स संघ (सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी कल्याण संघ) ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नई नीति पुरानी का ही नाममात्र परिवर्तन है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना लागू नहीं की जा सकती।

सरकार का पक्ष: सशर्त प्रमोशन का दावा
सरकार की ओर से सुनवाई में तर्क दिया गया कि 2025 के नियम सशर्त हैं और सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले पर निर्भर करेंगे। एक तुलनात्मक चार्ट भी पेश किया गया, जिसमें पुरानी और नई नीति के बीच अंतर दिखाया गया। हालांकि, कोर्ट ने इस पर संतुष्टि नहीं जताई और विस्तृत स्पष्टीकरण की मांग की। सामान्य प्रशासन विभाग ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में मामले की शीघ्र सुनवाई के लिए आवेदन करने की तैयारी कर ली है, ताकि विवाद का समाधान हो सके। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने कहा है कि यह कदम 7.50 लाख कर्मचारियों के हित में है, लेकिन कोर्ट के फैसले तक प्रमोशन प्रक्रिया प्रभावित रहेगी।

अगली सुनवाई 25 सितंबर को
मामले की अगली सुनवाई 25 सितंबर को निर्धारित की गई है। तब तक सरकार को अपना लिखित स्पष्टीकरण जमा करना होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुनवाई निर्णायक साबित हो सकती है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक प्रमोशन पर अनिश्चितता बनी रहेगी।

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