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जबलपुर : रहस्यमयी 64 योगिनी मंदिर, तंत्र-मंत्र और रहस्यों की अनोखी दुनिया

Jabalpur 64 Yogini Mandir

64 Yogini Mandir : जबलपुर। मध्यप्रदेश के जबलपुर में स्थित प्राचीन 64 योगिनी मंदिर तंत्र-मंत्र और रहस्यों की अनोखी दुनिया है। नर्मदा नदी के किनारे बसा यह मंदिर आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र भी है। यहां 64 योगिनियों की पूजा के दौरान भक्तों के मन में एक सवाल हमेशा कौंधता है – ये योगिनियां वास्तव में कौन थीं? उनकी पूजा का उद्देश्य क्या था और विधि कैसी थी? इनके पीछे की सच्चाई आज भी एक पहेली बनी हुई है। भारत भर में बिखरे 64 योगिनी मंदिरों में हर जगह नाम, रूप और कहानियां अलग-अलग हैं, जो इस परंपरा को और भी रहस्यमय बनाती हैं।

मध्यप्रदेश के तीन अनमोल मंदिर
जबलपुर में तंत्र साधना के इन प्रतीकों का अनोखा भंडार है तीन प्रमुख 64 योगिनी मंदिर। भेड़ाघाट के अलावा मुरैना और खजुराहो के ये मंदिर अपनी अनूठी कला के लिए विख्यात हैं। आश्चर्यजनक बात यह है कि, इन तीनों स्थानों पर योगिनियों की मूर्तियां एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं – मानो हर मंदिर अपनी-अपनी कथा कह रहा हो। भेड़ाघाट का यह मंदिर नाम से 64 योगिनियों का तो है, लेकिन वास्तव में यहां 95 जीवंत प्रतिमाएं विराजमान हैं, जिनमें कोई भी दो एक जैसी नहीं। पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया (ASI) के संरक्षण में यह स्थल खड़ा है, जो अपनी विशालता के कारण भारत के सभी योगिनी मंदिरों में सबसे भव्य माना जाता है। इसका बाहरी व्यास 130 फीट का है, और एकमात्र प्रवेश द्वार से गुजरकर अंदर का गोलाकार परिसर आकर्षित करता है। बीचों-बीच एक छोटा मंदिर है, जहां भगवान शिव-पार्वती की बारात की मनमोहक मूर्ति स्थापित है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के विशेषज्ञ नौखे पटेल बताते हैं कि, “यह मंदिर करीब 1000 वर्ष पुराना है, कलचुरी राजाओं के शासनकाल की देन। कुछ मूर्तियां इससे भी प्राचीन हैं, तो कुछ बाद की रचनाएं हैं। मंदिर का निर्माण भी चरणबद्ध तरीके से हुआ। हर मूर्ति की ऊंचाई लगभग 5 फीट और चौड़ाई 4 फीट है।” इन मूर्तियों की बारीक नक्काशी देखकर मन चकरा जाता है – हर चेहरा, हर मुद्रा एक नई कहानी बुनती है।

रहस्यमयी देवियां – गणेश जैसी, लेकिन स्त्री रूप में
इन 95 मूर्तियों में कुछ ऐसी हैं जो देखने वालों को हैरान कर देती हैं। उदाहरण के लिए, ऐंगिढी माता की प्रतिमा – एक नजर में लगेगी भगवान गणेश की, लेकिन स्तन और स्त्री लक्षण इसे अलग बनाते हैं। पंडित लोचन पुरी गोस्वामी कहते हैं, “पौराणिक ग्रंथों में वर्णन है कि माता पार्वती की आराधना के समय कुछ देवताओं ने स्त्री अवतार ग्रहण किया था। लेकिन ‘ऐंगिढी’ नाम का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं। इस मूर्ति का रहस्य आज भी अनकहा है।”

इसी तरह, ‘बारही’ नामक योगिनी की मूर्ति भगवान के बारह अवतारों की याद दिलाती है, लेकिन इसका जिक्र कहीं नहीं। इसका चेहरा वराह अवतार जैसा है, और पैरों के पास एक छोटा सा सूअर की आकृति उकेरी गई है। संस्कृत विद्वान भी इसे तांत्रिक देवी बताकर चुप हो जाते हैं। यहां 2-3 ऐसी मूर्तियां हैं, जिनके चेहरे भिन्न हैं, लेकिन गणों की नक्काशी हर जगह बेजोड़ बारीकी दर्शाती है।

एक और आकर्षक मूर्ति है श्री ठाकिनी देवी की। आक्रमणकारियों ने कई मूर्तियों को नष्ट कर दिया, लेकिन यह आंशिक रूप से बची रही। इसका सौंदर्य इतना मोहक है कि देखने वाला ठहर जाता है। फिर भी, इसकी पूजा का इतिहास और कारण किसी को पता नहीं। पुजारी लोचन पुरी गोस्वामी बताते हैं, “नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा के साथ इन योगिनियों को भी चावल से स्थापित किया जाता है। लेकिन प्रत्येक की अलग-अलग आराधना का रहस्य अनावृत है। लोग इन्हें तांत्रिक शक्तियां मानते हैं, लेकिन गहराई में उतरने से कतराते हैं।”

मंदिर की मूर्तियां एक-दूसरे से इतनी अलग हैं कि कुछ मन मोह लेती हैं, तो कुछ भय पैदा कर देती हैं। हर चेहरे में अलग भाव, हर श्रृंगार में नई कहानी। प्राचीन शिल्पकारों ने कौन-सी तकनीक अपनाई थी कि ये मूर्तियां आज भी जीवंत लगती हैं? भावनाओं का यह प्रदर्शन एक अनसुलझा रहस्य है। नवरात्रि के इन दिनों में भक्तों की भारी भीड़ यहां उमड़ रही है, जो न केवल पूजा के लिए आते हैं, बल्कि इन देवियों के राज खोलने की कोशिश भी करते हैं। लेकिन शायद यही इस मंदिर की ताकत है – रहस्यों में छिपी अनंत ऊर्जा।

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