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Ghughua Fossil National Park : जुरासिक और क्रेटेशियस युग की कहानियां सुनाता MP का घुघुआ जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान

Ghughua Fossil National Park

Ghughua Fossil National Park : समय की मशीन में सवार होकर 65 मिलियन साल पीछे चलें! मध्यप्रदेश के डिंडोरी में स्थित घुघुआ जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान एक ऐसा चमत्कार है जो जुरासिक और क्रेटेशियस युग की कहानियां सुनाता है। डिंडोरी से 70 किलोमीटर दूर घुघवा गांव में फैले इस 75 एकड़ के पार्क में दुर्लभ पौधों के जीवाश्म छिपे हैं, जो साहसी सैलानियों, वैज्ञानिकों और पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। इस प्रागैतिहासिक आश्चर्य की खोज के लिए तैयार हैं? आइए, शुरू करते हैं।

घुघुआ जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान का सफर
क्या आपने कभी सोचा है कि समय रुक जाए और आप प्राचीन दुनिया में कदम रखें? कान्हा और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के बीच स्थित घुघुआ जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान यात्रियों के लिए एक अनोखा पड़ाव है। जो गोंडवाना महाद्वीप के सुनहरे दिनों की याद दिलाता है। 1970 में डॉ. धर्मेंद्र प्रसाद द्वारा खोजे गए इस पार्क को 1983 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। आज यह पृथ्वी के प्राचीन वनस्पति इतिहास का जीवंत प्रमाण है, जो सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है।

इस पार्क की खासियत इसके संरक्षित जीवाश्म हैं—लकड़ी के पौधे, लताएं, पत्तियां, फूल, फल और बीज—जो सूचनात्मक नोट्स के साथ प्रदर्शित किए गए हैं। जिम्नोस्पर्म, एंजियोस्पर्म, मोनोकोटाइलडॉन, ताड़ और दुर्लभ ब्रायोफाइट्स के जीवाश्म यहां देखने को मिलते हैं।

इतिहास बदलने वाली खोज
घुघुआ की कहानी तब शुरू हुई जब डिंडोरी और मंडला जिलों में बिखरे जीवाश्मों पर किसी का ध्यान नहीं गया। 1970 में डॉ. धर्मेंद्र प्रसाद, विज्ञान कॉलेज जबलपुर से एस.आर. इंगले और बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान, लखनऊ से डॉ. एम.बी. बंदे ने इस खजाने को उजागर किया। उनकी पहल ने इस क्षेत्र को विश्व के जीवाश्म मानचित्र पर ला दिया।

जीवाश्मों की विविधता
घुघुआ के जीवाश्म अभिलेख क्रेटेशियस काल से प्रारंभिक तृतीयक काल तक के पौधों को समेटे हैं, जिनकी आयु लगभग 65 मिलियन वर्ष है। अब तक 18 कुलों की 31 प्रजातियों की पहचान हो चुकी है, जिसमें ताड़ और द्विबीजपत्री वृक्षों की भरमार है। यूकेलिप्टस के जीवाश्म, जो ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी हैं, गोंडवाना महाद्वीप के समय की याद दिलाते हैं।

प्राचीन खजूर, जामुन, केला, रुद्राक्ष और आंवला जैसे पौधों के जीवाश्म भी मिले हैं। कुछ शंखधारी जीवों के अवशेष भी पाए गए, जो बताते हैं कि यह क्षेत्र पहले अधिक आर्द्र और वर्षा वाला था। आज का डिंडोरी क्षेत्र पथरीला और पहाड़ी है, जहां जनसंख्या घनत्व कम है और लोग अन्य व्यवसायों में रुचि रखते हैं।

मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग इस स्थल का जोर-शोर से प्रचार कर रहा है। यह पार्क न केवल प्राकृतिक इतिहास के शौकीनों के लिए, बल्कि परिवारों और दोस्तों के साथ एक रोमांचक पिकनिक स्पॉट के रूप में भी उम्दा है।

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