जबलपुर। मध्यप्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की पदोन्नति को लेकर नया नियम लागू करने का मामला अब हाईकोर्ट की सुनवाई में उलझ गया है। गुरुवार को जबलपुर हाईकोर्ट में सरकार ने सशर्त पदोन्नति शुरू करने की मांग रखी, लेकिन वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन की अनुपस्थिति के कारण सुनवाई स्थगित कर दी गई। सरकार का तर्क है कि पिछले नौ वर्षों से रुकी पदोन्नतियों के कारण कर्मचारी हतोत्साहित हैं, और सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले के अंतिम निर्णय तक सशर्त पदोन्नति दी जानी चाहिए।
हाईकोर्ट में सरकार ने जोर देकर कहा कि नौ साल से रुकी पदोन्नतियों ने कर्मचारियों का मनोबल तोड़ा है। सुप्रीम कोर्ट में 27% ओबीसी आरक्षण से जुड़ा मामला विचाराधीन है, इसलिए अंतिम फैसले तक सशर्त पदोन्नति शुरू की जाए। सरकार का तर्क है कि यह कदम सभी वर्गों के कर्मचारियों के हित में है, और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने पर इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा। विभागीय अधिकारियों का अनुमान है कि प्रदेश के साढ़े सात लाख नियमित कर्मचारियों में से साढ़े तीन से चार लाख कर्मचारी पदोन्नति के पात्र हैं। नए नियम बनने के साथ ही विभागों ने प्रमोशन की प्रक्रिया शुरू कर दी थी, लेकिन याचिका ने इसे रोक दिया।
सामान्य वर्ग के याचिकाकर्ता और सपाक्स ने सरकार के रुख पर कड़ा ऐतराज जताया। सपाक्स का कहना है कि पुराने पदोन्नति नियम दोषपूर्ण थे, जिसे हाईकोर्ट ने भी निरस्त किया था। इसके बावजूद सरकार सुप्रीम कोर्ट में दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) को वापस नहीं ले रही, जो संदेह पैदा करता है। सपाक्स ने मांग की कि पुराने नियमों के तहत हुई पदोन्नतियों को रद्द कर कर्मचारियों को पदावनत किया जाए, और नई वरिष्ठता सूची बनाकर प्रमोशन प्रक्रिया शुरू हो। संगठन का आरोप है कि नए नियम भी सामान्य वर्ग के हितों की रक्षा नहीं करते और पुरानी विसंगतियों को दोहरा रहे हैं, जिससे सामान्य वर्ग को लगातार नुकसान हो रहा है।
हाईकोर्ट की युगल पीठ ने सरकार के अनुरोध पर सुनवाई को स्थगित कर अगली तारीख तय की है। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे आरक्षण मामले के साथ यह याचिका भी कर्मचारियों के भविष्य को प्रभावित करने वाली है।