Jolly LLB 3 : अभिनेता अक्षय कुमार और अरशद वारसी की फिल्म जॉली एलएलबी 3 अब कठघरे में है। 19 सितंबर को रिलीज होने वाली इस कॉमेडी-ड्रामा पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर हो गई है। ट्रेलर और गाने ‘मेरा भाई वकील’ को न्यायपालिका और वकालत पेशे की गरिमा पर हमला बताया गया है।
फिल्म की सटायर vs वकीलों की गरिमा – एक नया एंगल
जॉली एलएलबी सीरीज हमेशा से न्याय व्यवस्था पर कटाक्ष करती आई है—पहली दो फिल्मों ने भ्रष्टाचार और कोर्टरूम की हकीकत को हास्य के जरिए उजागर किया था। इस बार विवाद का नया एंगल यह है कि फिल्म न सिर्फ वकीलों को ‘तगड़ी बाजी’ करने वाला दिखाती है, बल्कि उनके गणवेश—बैंड और गाउन—को मनोरंजन का माध्यम बना रही है। क्या बॉलीवुड की यह क्रिएटिव फ्रीडम अब पेशेवर सम्मान की सीमाओं को लांघ रही है?
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी फिल्में समाज में जागरूकता फैलाती हैं, लेकिन जब बात वकीलों की होती है, तो क्या यह ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ का दुरुपयोग है? यह विवाद हमें याद दिलाता है कि पहले भी ‘ओएमजी’ और ‘पद्मावत’ जैसी फिल्मों पर कोर्ट पहुंची थीं, लेकिन जॉली एलएलबी 3 का गाना अब वकीलों के ‘रगो में तगड़मबाजी’ जैसे बोलों से सीधे उनके पेशे की इज्जत पर सवाल उठा रहा है।
Jolly LLB 3 के गाने से क्या है आपत्ति?
जबलपुर के गोविंद भवन कॉलोनी निवासी अधिवक्ता प्रांजल तिवारी ने यह जनहित याचिका दायर की है। याचिका में राज्य सरकार, गृह विभाग के प्रमुख सचिव, भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (सीबीएफसी) को पक्षकार बनाया गया है। उनके वकील प्रमोद सिंह तोमर और आरजू अली का कहना है कि फिल्म का गाना ‘मेरा भाई वकील’ वकालत जैसे सम्मानित पेशे को बदनाम कर रहा है।
‘मेरा भाई वकील’ गाने के बोल जैसे—”रगो में तगड़मबाजी है, हर ताले की चाबी है, लगा के सेटिंग ऐसी रखी, बॉस भी हमसे राजी है”—को अनुचित बताया गया है। आगे के बोल “गाड़ी ठोंक के गोली मार, पकड़ी ड्रग चली तलवार, हर केस की पैकेज डील है” और “कबीरा इस संसार में, सबसे सुखी वकील, जीत गए तो मोटी फीस, हार गए तो अपील” को वकीलों को ‘सेटिंगबाज’ और ‘फीसखोर’ दिखाने का आरोप लगाया गया है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि ये बोल न सिर्फ वकालत को अपमानित करते हैं, बल्कि पूरे न्यायतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं। एक और दिलचस्प बिंदु: गाने में अक्षय कुमार और अरशद वारसी वकीलों का बैंड पहनकर नाचते नजर आते हैं, जो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इस्तेमाल होने वाले गणवेश का मजाक उड़ाता है। प्रांजल तिवारी कहते हैं, “वकील का बैंड और गाउन पैरवी का प्रतीक है, इसे डांस फ्लोर पर लाकर अपमानित नहीं किया जा सकता।” यह नया एंगल हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या बॉलीवुड की कॉमेडी अब पेशेवर ड्रेस कोड की मर्यादा भूल रही है?
कोर्ट की कार्रवाई: शीघ्र सुनवाई का फैसला
याचिकाकर्ता की ओर से शीघ्र सुनवाई की मांग को गंभीरता से लेते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई 9 सितंबर को तय की है। यह फैसला फिल्म की रिलीज से ठीक 10 दिन पहले आया है, जिससे **जॉली एलएलबी 3 रिलीज डेट** पर सस्पेंस बढ़ गया है। अगर कोर्ट फिल्म के खिलाफ फैसला देता है, तो क्या गाने को एडिट किया जाएगा या रिलीज टल जाएगी? यह देखना दिलचस्प होगा कि सीबीएफसी, जो फिल्म को पहले ही सर्टिफिकेट दे चुका है, अब क्या रुख अपनाता है।
बॉलीवुड में सटायर का ट्रेंड: क्या सीख मिलेगी?
यह विवाद हमें बॉलीवुड की सटायर फिल्मों के ट्रेंड पर नजर डालने का मौका देता है। जॉली एलएलबी 1 और 2 ने भी न्याय व्यवस्था पर कटाक्ष किया था लेकिन वे सराहे गए क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार उजागर किया। लेकिन इस बार गाने के बोलों ने वकीलों को ‘क्रिमिनल्स का साथी’ जैसा दिखाया है, जो पेशे की नोबल इमेज से टकराता है। क्या यह केस बॉलीवुड को सटायर और अपमान की महीन रेखा सिखाएगा? या फिर यह फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का मुद्दा बनेगा? विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे विवाद फिल्म की पब्लिसिटी बढ़ाते हैं, लेकिन असली नुकसान पेशेवरों की छवि को होता है।
जॉली एलएलबी 3 अब सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि मनोरंजन और मर्यादा के बीच की जंग बन गई है। 9 सितंबर की सुनवाई पर सबकी नजरें टिकी हैं—क्या फिल्म रिलीज होगी या कोर्ट का ‘जॉली’ फैसला आएगा?