Naxalites active in Balaghat : बालाघाट। मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के लांजी क्षेत्र में नक्सलियों की काली परछाईं एक बार फिर मंडराने लगी है। चौरिया गांव से एक निर्दोष आदिवासी युवक के अचानक लापता होने की खबर ने पूरे इलाके को दहशत की चपेट में ले लिया है। युवक का नाम देवेंद्र उर्फ धदू बताया जा रहा है, और घटना के बाद नक्सलियों ने गांव में लाल स्याही से लिखे दो भयावह पर्चे फेंक दिए हैं। इनमें से एक पर्चे में युवक को ‘मौत की सजा’ देने का ऐलान किया गया है, जबकि दूसरे में ग्रामीणों को पुलिस से दूर रहने और मुखबिरी न करने की सख्त चेतावनी दी गई है। यह घटना न केवल ग्रामीणों के बीच खौफ पैदा कर रही है, बल्कि बालाघाट को नक्सल प्रभावित जिले के रूप में चिह्नित करने वाली पुरानी सच्चाई को फिर से उजागर कर रही है।
चौरिया गांव, जो बालाघाट के घने जंगलों से घिरा हुआ है, यहां की शांत जिंदगी एक रात में उथल-पुथल में बदल गई। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, देवेंद्र, जो एक साधारण आदिवासी युवक हैं, पिछले कुछ दिनों से लापता हैं। नक्सलियों ने जो पहला पर्चा छोड़ा है, उसमें देवेंद्र को पुलिस का मुखबिर करार दिया गया है। पर्चे में दावा किया गया है कि युवक ने तीन-चार बार पुलिस को माओवादी दलों और उनके डेरों की जानकारी साझा की थी। इतना ही नहीं, उसे जंगल में ‘दहान’ नामक स्थान पर पुलिस द्वारा तैनात रखा गया था, और वह पितकोना पुलिस चौकी में दही-दूध पहुंचाने का काम भी करता था। नक्सलियों ने इन आरोपों की ‘पुष्टि’ होने के बाद देवेंद्र को “मौत की सजा” सुनाने का फरमान जारी किया है।
यह पर्चा लाल स्याही में लिखा हुआ है, जो नक्सलियों की पहचान का प्रतीक माना जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि युवक का अपहरण रात के अंधेरे में किया गया, और सुबह पर्चे मिलने से पूरे गांव में सनसनी फैल गई। देवेंद्र का परिवार सदमे में है, और वे पुलिस से गुहार लगा रहे हैं कि उनके बेटे को जल्द सुरक्षित वापस लाया जाए।
दूसरा पर्चा: पुलिस पर हमला और ग्रामीणों को धमकी
नक्सलियों का दूसरा पर्चा और भी उग्र है, जिसमें पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इसमें कहा गया है कि पुलिस गरीब आदिवासियों को आपस में भिड़वाकर उनकी हत्या करवाती है। पुलिस को “साम्राज्यवादी और सामंती ताकतों की रक्षक” बताते हुए नक्सलियों ने आरोप लगाया कि वह गरीबों का शोषण करती है, उन्हें विस्थापित कर उनके जीवन को तबाह कर देती है। पर्चे में ग्रामीणों को साफ चेतावनी दी गई है: “पुलिस से दूरी बनाओ, उसके जाल में न फंसो, मुखबिरी करने वालों का अंजाम देख लो।” यह संदेश चौरिया और आसपास के गांवों जैसे कि पितकोना, लांजी आदि में फैल गया है, जहां लोग अब खुलकर बोलने से डर रहे हैं। एक ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमें डर है कि कहीं हमें भी निशाना न बना दें। नक्सली अभी भी जंगलों में छिपे हुए हैं।”
इंस्पेक्टर जनरल (आईजी) संजय कुमार ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि युवक के लापता होने और पर्चों की बरामदगी की सूचना मिली है। उन्होंने प्रथम दृष्टया इसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की मलाजखंड एरिया कमेटी से जुड़ा बताया। आईजी ने स्पष्ट किया, “युवक के सुरक्षित मिलने के बाद ही यह पुष्टि हो सकेगी कि यह वास्तविक नक्सली अपहरण है या इसके पीछे कोई अन्य कारण है। फिलहाल, पुलिस पूरी तत्परता से जांच कर रही है।” उन्होंने आश्वासन दिया कि सर्च ऑपरेशन तेज कर दिए गए हैं, और पर्चों की भाषा, लिखावट तथा अन्य सबूतों की फॉरेंसिक जांच चल रही है।
बालाघाट पुलिस “मिशन-2026” के तहत नक्सल उन्मूलन के लिए कटिबद्ध है। इस अभियान के अंतर्गत जंगलों में लगातार सर्चिंग, नक्सलियों की सप्लाई लाइन तोड़ना और ग्रामीणों में नक्सली विचारधारा के खिलाफ जागरूकता फैलाना शामिल है। लेकिन यह घटना दर्शाती है कि नक्सली अभी भी ग्रामीण इलाकों में सक्रिय हैं और दबाव बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में बालाघाट को नक्सल प्रभावित जिलों की सूची में रखा गया है, जहां सुरक्षा बलों ने कई ऑपरेशन चलाए हैं।